समय कितना भी बुरा हो बस ये 2 बातें याद रखना |
एक अत्यंत दुखी व्यक्ति एक योगी से कहता है, मैं अपने जीवन से बहुत दुखी हूँ। मैं भी अपनी पत्नी, बच्चों और परिवार को खुश नहीं कर सकता। मैं भी अपने लिए कुछ नहीं कर पा रहा; कभी-कभी मुझे अपनी जिंदगी समाप्त करने का भी विचार आता है। आप इतनी तपस्या करते हैं और इतनी साधनाएं करते हैं। क्या आप मुझे कुछ बता सकते हैं जिससे मैं अपने बुरे दिनों से बाहर निकल सकूँ? मैं बहुत परेशान हूँ।
थोड़ी देर में, वे चीटियां भागने लगी। जब उनका घर कुछ ही देर में फिर से ध्वस्त हो गया, तो वह युवक को कुछ संतोष हुआ। इस बार मैंने पूरी तरह से उस घर को ध्वस्त कर दिया है। चीटियों के लिए अब यहाँ कोई घर नहीं होगा। ताकि चीटियां वहाँ पर अपना घर नहीं बना सके, उसने जाने से पहले उस घर पर ठंडा पानी भी डाल दिया। और इस तरह, युवा अपना काम पूरा करके अपने घर लौट आया।
आज रात सोते वक्त वह व्यक्ति फिर से सोच रहा था
कि क्या महात्मा सही काम कर रहे हैं? क्या किसी सिद्ध आदमी को किसी का घर
बर्बाद करना शोभा देता है? क्या होगा अगर वह एक सिद्ध व्यक्ति है?
क्या
होगा अगर वह मुझे मूर्ख बनाते हैं? लेकिन फिर उसने फैसला किया कि मैं अपने
काम को पहले करूँगा। बाद में वह सो जाता है और सोचता है कि महात्मा मुझसे ऐसा
क्यों करवा रहे थे।
अगले दिन सुबह वह फिर से उसी पहाड़ की ओर जाता
है। वह ट्रेन पर उसी स्थान पर पहुँचता है जहाँ उसने अपना घर तोड़ दिया था, और
खुश होकर देखता है कि वहाँ कोई घर नहीं था। सारी चींटियाँ वहाँ से भाग गईं। अब
उसने सोचा कि अब मेरे पास क्या करना है? क्योंकि चीटियों ने अपना घर बदल लिया
था और महात्मा ने मुझे सातवें दिन आने को कहा था। लेकिन आज तीसरा दिन ही है। अब
बाकी चार दिनों में वापस आने का क्या कार्यक्रम है? उसने सोचा कि
यहाँ से सीधे उसी महात्मा के पास जाएगा।
और उनको ये सब जानकारी देगा। जब वह वापस पहाड़ी
से उस महात्मा की कुटिया की ओर जाने लगा, तो अचानक उसकी नजर एक और चींटियों से
बनाए गए घरौंदे पर पड़ी। मतलब, चींटियों ने अपना घर ही बनाया था,
और
अब वे अपने नए घर में रह रहे हैं। यह नया घर उनके पुराने घर से कुछ दूर था,
और
एक युवा ने उस घरौंदे को देखा तो सोचा कि शायद महात्मा जानता था कि ये चींटियां
अपना घर यहाँ से बदलकर किसी दूसरे स्थान पर बना देंगे। इसलिए, उन्होंने
मुझे सातवें दिन आने के लिए कहा था, क्योंकि वह अपना नया घर भी गिरा देगा।
जब वह वहाँ पहुंचा, चीटियां अपने काम में लगी हुई थीं। वह अपने लिए
खाना इकठ्ठा करती जाती थी और फिर उसे अपने घर में जमा करती जाती थी, जो
एक पुराना घर था जो टूट गया था।
चीटियां वहाँ से भी अनाज लेकर अपने नए घर में
ला रही थीं, क्योंकि वहाँ भी अनाज के कण बचे हुए थे। अब
युवक का मन फिर से कमजोर हो गया क्योंकि वह भी कमजोर था। खुद भी व्यस्त था,
इसलिए
उसके मन में उन चींटियों की दया का भाव उमड़ रहा था। उसे उन पर दया आती थी। वह
चाहता था कि उनकी मदद करे, लेकिन उल्टा उनकी हानि करता था। लेकिन
उस महात्मा की बात को याद करते हुए, उसने फिर से उस घर को तोड़ने का फैसला
किया और इस बार बहुत सावधानी से बिना किसी को चोट पहुँचाए घर को तोड़ना शुरू कर
दिया। महात्मा ने पहले ही किसी को चोट न पहुंचाने की शर्त रखी थी, इसलिए
समय थोड़ा अधिक लगा। इसलिए उसे बहुत सावधानी से उन घरों को नष्ट करना पड़ा। लेकिन आखिरकार
उसने उस घर को भी बर्बाद कर दिया, और वह बहुत दुखी हुई। वह इस बार पहले
से भी अधिक दुखी था क्योंकि उनका नया घर भी गिर गया था। अब वह उन चींटियों को बसने
ही नहीं देता था और खुद को शैतान या दानव मानने लगा था। लेकिन उस महात्मा की बात
को मानते हुए वह अपने घर वापस आ गया। रात को सोने से पहले, उसने एक बार फिर
सोचा कि मैं एक बड़ा शैतान और दानव हूँ, पुराना घर छोड़ दो।
उन चींटियों को बसने के लिए कहीं भी जगह नहीं
दे रहा हूँ। उस चीटियों ने मेरे बारे में क्या सोचा होगा? वह उस भगवान को
कितना दुत्कारेंगे जो मेरे द्वारा ये काम कर रहा है? लेकिन उसने फिर
भी अगले दिन जाने का निर्णय लिया और अगले दिन सुबह सुबह वहाँ पर फिर से पहुँच गया।
वह फिर से आश्चर्यचकित हो जाता है कि चींटी इस बार किसी और स्थान पर अपना घर बना
चुकी है।
तो वह पहले से भी अधिक शक्ति से काम कर रही थी
और एक रात में एक बड़ा घर बना लिया था. अब वह फिर से अनाज और खाना इकट्ठा करने में
लगी हुई थी। उसने देखा कि ये चींटियां किस मिट्टी से बनाई गई हैं। मैं बार-बार
इनको यहाँ से बाहर निकालने की कोशिश करता हूँ, लेकिन वे वहाँ
अपना घर बना लेती हैं। क्या वे नहीं जानते कि मैं इन्हें यहाँ कभी नहीं रहने दूंगा?
ये
दिखने में इतनी छोटी चींटी है। लेकिन ये हार
नहीं मान रही है। यह
देखकर बड़ी हैरान हो गई और इस बार उसने गुस्से में घर को बर्बाद करना शुरू कर
दिया। लेकिन इस बार वहीं कुछ चीटियां मर गईं। उसके पैरों तले चोट लगी। जब उसने उन
चींटियों को कुचल दिया, तो गुस्से में उसने उन्हें कितनी चोट पहुंचा दी
थी। उसकी आत्मा दुःख से भर गई। वह रोते हुए अपने घर की ओर बढ़ा। रात में सोते समय उसने सोचा कि मैं
उन चींटियों पर बहुत ज्यादा अत्याचार कर रहा हूँ, अब इससे अधिक
नहीं कर पाऊंगा. अगले दिन, वह अपने घर से कुछ आटा लेकर उसी पहाड़ी
पर जाता है। आज उसके मन में उन चींटियों के प्रति दया और श्रद्धा था। चीटियां आज
उसकी मदद करना चाहती थीं, और जब वह वहाँ पहुंचा, वे
फिर से अपना नया घर बनाने में लगी हुई थीं। अगले तीन दिनों तक उसने उन चींटियों को अपना लाया हुआ आटा खिलाया,
बहुत
प्रेम से। हर सुबह वह जाता और अपने हाथों से उन चींटियों को आटा खिलाता। 7 दिन
बाद, वह युवा उस गुरु के पास जाकर हाथ जोड़कर माफी माँगता है। उन चींटियों
का घर नष्ट करने का मैंने बहुत प्रयास किया।
मैंने उनका घर चार बार तोड़ा, एक
बार नहीं चार बार, लेकिन फिर भी मैं हिम्मत नहीं कर पाया। उनके घर
को तोड़ नहीं पाया। मुझे खेद नहीं है कि मैंने आपका काम पूरा नहीं किया और इसके
बदले आप मुझे कुछ तरीके बताएंगे जो मुझे बुरे समय से बाहर निकाल सकते हैं। मुझे
लगता है कि मैंने सही कार्रवाई की। यही कारण है कि मैं तुमसे आदेश लेकर वापस जा
रहा हूँ। मुझे वापस अपने घर जाने की अनुमति दीजिए। यह सुनकर महात्मा ने मुस्कुराते हुए
कहा कि बेटा, कहाँ चले गए? रुको और कुछ देर
ठहर जाओ, फिर चले जाओ. इसके बाद महात्मा ने उस युवा के लिए पानी लेकर आया।
पानी पिलाने के बाद महात्मा उस युवा से पूछते हैं कि उन्होंने उन चींटियों का घर
क्यों नहीं तोड़ा? तुम इतने बड़े हो और उन छोटी छोटी चीटियों का
घर तोड़ नहीं पाए? जवाब में उस युवा ने कहा, हे
महात्मा, मैंने उन चींटियों का घर तबाह कर दिया था।
इसे दो बार किया गया था। मैंने उन चींटियों को
एक बार अपने गुस्से में हानि पहुंचाई थी, लेकिन उसी दिन मैंने उनको हानि
पहुंचाई। उसी दिन मैंने सोचा कि मैं उनसे क्यों बदला लेता हूँ? मैंने
सोचा कि क्यों मैं इनकी इतनी परेशानी कर रहा हूँ और उसी दिन से मैंने उनकी मदद
करने की बजाय उनकी मदद करनी शुरू कर दी। यह सुनकर गुरु ने कहा कि यही सीखने की बात
है। एक छोटी सी बात जीवन का संदेश देती है।
मैंने तुम्हें उन चींटियों का घर तोड़ने नहीं
भेजा था। मैंने आपको भेजा था ताकि आप उन चींटियों से कुछ सीख सकें. आप उन चींटियों
से क्या सीख गए मुझे बता सकते हैं? उस युवा ने इसे सुनकर पूरी कहानी
सुनाई। पूरी कहानी सुनकर महात्मा ने मुस्कुराते हुए कहा कि बेटा ने इन चींटियों से
पहली सीख ली कि तुमने उनके घर को कितनी बार तोड़ने की कोशिश की थी। कितनी बार उनका
घर बर्बाद करने की कोशिश की।
लेकिन हर बार उसने अपना नया घर बनाया। हार कभी नहीं
मानी। चीटियां तुम्हें वहाँ नहीं मिलती अगर वह हार मान लेती।जीवन काम करना है। नाम
कर्मशीलता है। लेकिन हम लोग सिर्फ एक दो बार हारने पर टूट जाते हैं, हताश
हो जाते हैं और फिर जीवन में प्रयास ही नहीं करते, और कुछ लोग तो
अपनी जान दे देते हैं. लेकिन तुमने जानवरों में एक बात देखी होगी।
की वह स्वयं कभी अपना जीवन खत्म नहीं कर सकते।
तुमने कभी सुना होगा कि कोई जानवर आत्महत्या करता है, चाहे वह भूखा हो
या दुखी हो, लेकिन वह अपने जीवन के लिए संघर्ष करता रहता
है. दूसरी तरफ, हम लोग सिर्फ एक बार हताश होने पर आत्महत्या
करते हैं। जीवन कर्मशीलता है, काम करना है, और मृत्यु आखिरी
आराम है, परम आराम है।
मृत्यु के बाद परम विश्राम में चले ही जाओगे,
तो
उससे पहले कर्म करना क्यों छोड़ रहे हो? क्या आप हताश हो रहे हैं? अगर
आपका एक घर टूट गया है, तो एक नया बनाने का प्रयास करो; कोशिश
करने वालों की कभी हार नहीं होती। उन चींटियों से आप इसे देख चुके हैं।
वो चीटियां आपसे बहुत छोटी हैं। और तुम बहुत
बड़े हो, लेकिन उनका मन तुम्हारे मन से बहुत बड़ा है। उन चींटियों ने इतनी बार
घर टूटने पर भी कभी हार नहीं मानी, क्योंकि वे इतने दृढ़ हैं। यहाँ से
दूसरा ज्ञान प्राप्त हुआ। यह था कि जब भी बुरा समय आता है, हमें लगता है कि
यह कभी नहीं जाएगा। ये समय मेरे जीवन को बर्बाद कर देगा, मुझे कभी जीने
नहीं देगा और अपने इन्हीं खयालों और विचारों से जो असली नहीं हैं।
वह सिर्फ एक विचार है, और वही विचार
हमारे मन को दुखी करते हैं, इसलिए हम कोशिश भी नहीं करते। लेकिन
तुम खुद सोचो, प्रकृति अक्सर हमें नुकसान पहुंचाएगी, लेकिन
कब तक? हम बार-बार उठकर फिर से नए प्रयास करते रहेंगे, तो
प्रकृति भी हमारे सामने घुटने टेक देगी. एक दिन प्रकृति भी हमें दयावान, कृपालु
और सब कुछ देने लगेगी।
जो हम कभी चाहते थे। तुमने खुद देखा कि तुम उन
चींटियों को मार डालना चाहते थे, लेकिन बाद में तुम ही उन चींटियों को
आटा और अनाज देने लगे। आप ही उन पर कृपालु रहे। तुमने देखा कि वह चीटियां हार नहीं
मान रही थी, तो क्या हुआ? इसी तरह,
अगर
आप अपने जीवन में कभी हार नहीं मानोगे, प्रकृति आपको एक दिन सब कुछ देगी जो आप
चाहते हैं। यही कारण है कि दो बातें याद रखना चाहिए: कर्मशीलता से काम करते रहना
और दूसरा यह कि प्रकृति एक दिन आपके काम का परिणाम जरूर देगी।
दोस्तों, मुझे आशा है कि इस कहानी ने आपको बहुत कुछ सिखाया है. कृपया हमें कमेंट बॉक्स में कमेंट करके बताएं और इसे अपने दोस्तों से भी शेयर करें। धन्यवाद...।
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